Tuesday 26 June 2007

एक अधूरा सा ख्वाब...

अपनी माटी से बहुत, दूर हम चले जाएँगे
खुशबू बहुत पुकारे लेकिन, परदेस में हम बस जाएँगे
आँख खुली तो देखा मैने, सपना सच में बदल रहा था
नाम कामाकर, शोहरत कामाकर, खुशियों के दो पल हँस रहा था.

तभी देश से संदेशा आया, न्योता भाई की शादी का लाया,
अब तो हम को देश था जाना, अपनो से था मिलकर आना
खुशियों संग तब हम पुष्पक चढ़े थे, अपनो से मिलने को तरस रहे थे.
देश में आकर अपने ही, सैनिक दल में खो गये थे,
दूर दूर तक देखा जहाँ तक सुरक्षा कवच बिछा वहाँ तक
इसी बीच हम घर पर पहुँचे, अपने पुराने दर पर पहुँचे
झुक कर माटी को सलाम किया, उन सब को मैने प्रणाम किया.
सामने दर पर माँ खड़ी थी, आरत ताल सजाकर खड़ी थी.
उनके पीछे अन्न दाता खड़े थे, खुशियों मारे बेजान खड़े थे
उन दोनो को बाहों में भरकर, फिर मैने गृह प्रवेश किया.
ढूँढ रही थी आँखें मेरी बहना को प्यारी मेरी
तभी नाचती भीड़ में मुझको, चेहरा उसका दिखाई दिया
ऐसा लगा तब मुझको प्यारे, चाँद ने चकोर बिखेर दिया.
बहार फूलों की खिल रही थी, इज़्ज़त हमको मिल रही थी,
अब शायद लग रहा था, आदमी बड़ा मैं बन गया था.
सभी हमीन को देख रहे थे, पैर हमारे थिरक भी रहे थे
इस थिरकन में कब क्या हुआ , हम्को अभी ना पता चला
पर माँ तो जान गयी थी राज वो सारा दिल का छिपा हुआ

एक नहीं दिन कहीं बीत चले थे, बिल्कुल भी ना पता चला
खुशियों के उन झरोकों में शादी का भी ना पता चला.
दुल्हन नयी अब आई थी, खुशियाँ संग में लायी थी
है यही दुआ अब मेरी रब से, हाथ रखे सिर पर इन सबके.
मिला मुझे भी तोहफ़ा बड़ा था, लेकिन हम से ना वो खोला गया था,
वादा करके सालों बाद का, मैने उसको रख दिया था.

अब वापस मुझको जाना था, माटी सेफ़िर दूर चले जाना था
पर इस बार ना अकेला जा रहा था, खुशियों को संग ले जा रहा था
वहीं रहेंगी मेरे संग, उँचे रखेंगी ये क़दम...

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