Friday 29 June 2007

यार मुझे जीना सीखा दे...

मुझको अपना अक्स दिखा दे
यार मुझे जीना सीखा दे

मुझको भी तू जाम पिला दे
यार मुझे हँसना सिखा दे

उस कच्ची उम्मीद सहारे
खोद रहा नींव में प्यारे
वापस जब तुम आ जाओगे
छत इसी की तुम डलवाओगे

छोटी छोटी आस जोड़कर
मैने यह दीवार बनाई
पर अंत में समझ ना आया
क्यों मैने यह दीवार बनाई

उपर देखा आसमा खड़ा था
भीड़ को लेकर झाँक रहा था
और मेरा मज़ाक बनाकर
पानी के छींत फेंक रहा था

अब तो आ जाओ साहिब मेरे
कब तक यूँ तदपाओगे?
अब तुम दीदार करने को
कब तक यूँ तरसाओगे?

जल्दी आओ मीत मेरे
दुनिया मुझ पर हँस रही है
प्यार हमारा मिलन हमारा
झूठा कह कर हँस रही है

आस वही दोहराहा हूँ
की जब तुम वापस आओगे
अपना साया डाल मुझपर
मेरी छत बन जाओगे

अपना सच्चा साथ डालकर
चारदीवारी घर में बदल जाओगे

© Copyright rights reserved
Composed by Nitesh Jain (June 2007)

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