हर खुशी है लोगों के दमन में,
पर एक हंसी के लिए वक्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
जिन्दगी के लिए ही वक्त नही.
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नही.
सारे नाम मोबाइल में हैं
दोस्ती के लिए वक्त नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नही।
आंखों मे है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नही.
दिल है गमो से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नही।
पैसों की दौड़ मे ऐसे दौड,
की थकने का भी वक्त नही.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही।
तू ही बता ए जिन्दगी,
इस जिन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मारने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नही.......
Sunday 7 October 2007
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2 comments:
Ultimate fact of life.
Life exist in Simplicity.
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