Friday 13 July 2007


उन दिनों, जब के तुम थे यहाँ
जिन्दगी जागी जागी सी थी
सारे मौसम बडे मेहरबान दोस्त थे
रास्ते, दावत नामे थे - जो मंजिलों ने लिखें थे जमीं पर हमारे लिए
पेड बाहें पसारें खडे थे
हमे छाँव कि श्वाल पहनाने के वास्ते
शाम को सब सितारे, बहुत मुस्कुराते थे जब देखते थे हमें
आती जाती हवाएं, कोई गीत खुशबु का गाती हूई, छेडती थी, गुज़र जाती थी
अस्समा पिगले-नीलम का एक गहरा तालाब था
जिसमे हर रात एक चांद का फूल खिलता था
और पिगले-नीलम कि लहरों में बहता हुआ
वोह हमारे दिलों के किनारों को छू लेता था
उन दिनों, जब के तुम थे यहाँ
अश्कों में जैसे धुल गए, सब मुस्कुराते रंग
रस्ते में थक के सो गयी मासूम सी उमंग
दिल है कि फिर भी ख़्वाब सजाने का शौक़ है
पथ्थर पे भी गुलाब उगाने का शौक़ है
बरसो से यूं तो एक अमावस कि रात है
अब हौसला कहूं कि जिद्द कि बात है
दिल कहता हैं अँधेरे में भी रोशनी तो है
माना के राख हो गए उम्मीद के ये अलाव

इस राख में भी आग कहीँ पर दबी तो हैं
आपकी याद कैसे आएगी
आप ये क्यों समझ ना पाते हैं
याद टोह सिर्फ उनकी आती है
हम कभी जिनको भूल जाते हैं

...जावेद अख्तर

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